वो भी क्या दिन थे जब आशिक लड़कियों के रुमाल के लिए मरा करते थे |अगर गलती से किसी लड़की का रुमाल मिल जाए तो खुद को खुशनसीब समझते थे| उस रुमाल को जान से भी ज्यादा प्यार करते| उसे तकिये के नीचे रख के सोते थे। रुमाल प्रेमियों को बहुत भाया। रंग-बिरंगे रुमालों पर विभिन्न प्रकार के चित्र एवं चिन्ह बनाए जाते हैं। किन्ही पर नाम के प्रथम अक्षर वर्णित होते हैं। पंडुक पक्षीयों का जोड़ा रुमाल पर शोभायमान होता है। जिस तरह जीवन पर्यन्त पंडूक पक्षी का प्रेम और जोड़ा बना रहता है उसी तरह प्रेमी-प्रेमिकाओं का भी ताउम्र जोड़ा बना रहे।
नायिका कहीं अपना रुमाल जानबूझ कर या धोखे से भूल जाती तो आशिक की पौ बारह मानिए। नायिका रुमाल पर सूई-धागे से दिल का चिन्ह बनाती तो आशिक समझता कि यह दिल उसी के लिए रुमाल पर निकाल कर रख दिया है। वह इसे सूंघ कर देखता कि चमेली के इत्र की महक है या नहीं और इससे उसके कुल-परिवार के रहन-सहन एवं आर्थिक स्थिति का अंदाजा लगाता। आशिक रुमाल पाकर रोमांचित हो उठता और कह उठता कि-इस तरह के रुमाल तो मसूरी के माल रोड़ पर मिला करते थे। ऐसा ही रुमाल सोहनी ने अपने महिवाल को दरिया-ए-चिनाब के किनारे दिया था और महिवाल ने उसे ताउम्र अपने गले से बांधे रखे था। उस वक्त मान्यता थी कि रुमाल का तोहफ़ा देने से प्रेम सफ़ल हो जाता है। स्थानीय बोलियों एवं भाषाओं में रुमाल को लेकर प्रेम के गीत लिखे गए जिन्हे आज तक ग्रामीण अंचलों में गाया जाता है।
फ़िल्म वालों ने भी रुमाल का प्रचार-प्रसार करने में कोई कोर कसर बाकी नहीं रखी। फ़िल्मों एवं फ़िल्मी गीतों में रुमाल का इस्तेमाल धड़ल्ले से होने लगा। जब प्राण जैसा उम्दा खलनायक गले में रुमाल बांधकर रामपुरी चाकू परदे पर लहराता था तो दर्शक सिहर उठते थे और यही रुमाल देवानंद गले में डाल कर एक गीत गाता था तो सिनेमा हॉल सीटियों से गुंज उठता था। फ़िल्मी गीत भी चल पड़े - इस तरह फ़िल्मों मे रुमाल अब तक छाया हुआ है।
जहाँ एक तरफ़ यह रुमाल प्रेमियों को आकर्षित करता रहा वहीं दूसरी तरफ़ इसने बेरहमी से कत्ल भी किए। इतिहास में जब दुनिया के सबसे खुंखार सीरियल किलर का जिक्र आता है तो पीले रुमाल की क्रूरता भी सामने आती है। बेरहाम नामक इस बेरहम ठग को खून से डर लगता था, यह अपने शिकार की हत्या पीले रुमाल से गला घोंट कर करता था। 1765-1840 तक इस बेरहम खूनी का दौर चला। व्यापारी हो या फिर तीर्थयात्रा पर निकले श्रद्धालु या फिर चार धाम के यात्रा करने जा रहे परिवार, सभी निकलते तो अपने-अपने घरों से लेकिन ना जाने कहां गायब हो जाते, यह एक रहस्य बन गया था। काफिले में चलने वाले लोगों को जमीन खा जाती है या आकाश निगल जाता है, किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था।यह यात्रियों के दल में शामिल होकर उन्हे हत्या करने के पश्चात लूट लेता था और उनकी लाशें दफ़ना देता था जिससे उनका नामो-निशान ही नहीं मिलता था।सन् 1809 मे इंग्लैंड से भारत आने वाले अंग्रेज अफसर कैप्टन विलियम स्लीमैन को ईस्ट इंडिया कंपनी ने लगातार गायब हो रहे लोगों के रहस्य का पता लगाने की जिम्मेदारी सौपी। तब 10 वर्षों की गुप्तचरी के पश्चात इस पीले रुमाल वाले खूनी को गिरफ़्तार किया जा सका। बताते तो ये भी है कि स्लीमैन का एक पड़पोता इंग्लैड में रहता है और उसने अपने ड्राइंगरुम में उस पीले रुमाल को संजों कर रख रखा है।
भारत में हिमाचल के चंबा का रुमाल अपनी बेमिसाल कढाई के लिए प्रसिद्ध है। सूती के कपड़ों पर जब रेशम के चमकीले रंग-बिरंगे धागों से कलाकार जब अपनी कल्पनाओं की कढाई करते हैं तो वह सजीव हो उठती है। इन रुमालों पर की गयी कलाकारी को देखकर ऐसा लगता है मानो चित्र अब बोल पड़ेगें। लोग कढाई की इस बारीक कला को देख कर आश्चर्य चकित हो जाते हैं। चम्बा में बनने वाले रुमालों पर न केवल रामायण, महाभारत, श्रीमदभागवत, दूर्गासप्तशती, और कृष्ण लीलाओं को भी काढा जाता है बल्कि राजाओं के आखेट का भी सजीव चित्रण किया जाता है। यह रुमाल एक वर्ग फ़ीट से लेकर 10 वर्ग फ़ीट तक के आकार में होते हैं। चम्बा की रुमाल कढाई प्राचीन हस्तकला का नमूना है बल्कि एतिहासिक महत्व भी रखती है। इसका पंजीयन बौद्धिक सम्पदा अधिनियम के तहत करा लिया गया है। जिससे रुमाल निर्माण की हस्तकला को संरक्षण देकर बचाया जा सके।
वर्तमान ने कागज के नेपकीन बाजार में आ गए हैं। इनका प्रचलन रुमालों को बाजार से बाहर नहीं कर पाया है। रुमाल की अपनी अलग ही महत्ता है। आज भी हस्त निर्मित रुमाल बनाए जा रहे हैं। सूती एवं रेशमी वस्त्र पर विभिन्न माध्यमों से कढाई एवं प्रिंटिग हो रही है। जिनमें हाथों से किए गए बंधेज के काम में लगभग 150 तरह के डिजाईन बनाए जाते हैं तथा मशीन एवं कम्प्युटर की सहायता से हजारों डिजाईन बनाए जा सकते हैं। इसके अतिरिक्त बुटिक प्रिंट, टैक्स्चर प्रिंट, फ़ैब्रिक पेंटिंग, क्रोशिया वर्क, ब्लॉक प्रिंट, सैटिंग, वेजीटेबल प्रिंट, स्क्रीन प्रिंट, थ्री डी कलर, ग्लो पैंटिंग, स्प्रे पेंटिंग, थ्रेड पैंटिंग, मारबल पैंटिग, स्मोक पैंटिग, गोदना पैंटिंग, एवं फ़ैंसी रुमाल भी बनाए जा रहे हैं। समय कितना भी बदल जाए लेकिन रुमालों का चलन रहेगा और जनमानस को अपने नए-नए रुपों में आकर्षित करता रहेगा।
ब्लॉ.ललित शर्मा की पोस्ट पर आधारित पॉडकास्ट शुभदा पांडे के स्वर में
प्रस्तुति - संज्ञा टंडन
पॉडकास्ट में शामिल गीत सिर पर टोपी लाल, हाथ में रेशम का रुमाल- तुमसा नहीं देखा
रेशम का रुमाल गले पे डालके, तू आ जाना दिलदार, इला अरूण
हाथों में आ गया जो कल रुमाल आपका, बेचैन केर रहा है ख्याल आपका - आओ प्यार करें
दूंगी तैनू रेशमी रुमाल,ओ बांके जरा डेरे आना- प्रेम पुजारीओ
आएगी मेरी याद जब होगा बुरा हाल तो देख ये रूमाल - गुरूदेव
आते जाते खूबसूरत आवारा - अनुरोध