इसी विषय पर इंटरनेट पर उपलब्ध एक कविता
माँ, मुझे मार ही डाल.....
- नविन धामेचा
‘बेटी’ है, गर्भपरीक्षण में पाया गया
माँ-बाप(!)ने गर्भपात का निश्चय किया ।
बेटी हूँ,
तो क्या इस दुनिया में आ नहीं सकती ?
माता-पिता का प्यार पा नहीं सकती ?
दोष मेरा क्या है अगर मैं लड़का नहीं
क्या मैं तेरी इच्छा का फल नहीं ?,
मैं तेरे ही बाग का फूल, माँ मुझे मत मार ।
गोद में तेरी खेलूंगी तेरी गुड़िया बनकर
किलकिलाहट से भर दूंगी तेरा ये घर,
तेरा ही रूप, मैं तेरी ही परछाई हूँ
दामन में अपने तुझे ही समेटके लाई हूँ,
मैं हूँ तेरा ही अंश, माँ मुझे मत मार ।
कहते हैं मां तो ईश्वर का रूप होती है
और मुझसे ही तो माँ बनती है,
अगर मुझे ही नहीं अपनाओगे
तो ईश्वर को कहाँ से पाओगे ?
मैं इसका वरदान, माँ मुझे मत मार ।
चुपचाप सब सह लूँगी मुझे जीने दे
जीवन की एक साँस मुझे भी लेने दे,
कुदरत ने बनायी है ये धरती सबके लिये
फिर मेरे साथ ये नाइन्साफी किस लिये ?
मैं एक नन्ही-सी जान, मा मुझे मत मार ।
मा, तू भी तो बेटी बनकर ही आई थी
ममता और करुणा साथ में ही लाई थी,
आज इतनी निर्दयी कैसे हो गई ?
नारी ही नारी की दुश्मन हो गई ?
मैं तो दो घर की ‘शान’, माँ मुझे मत मार ।
3 comments:
बेटी... ईश्वर का दिया सबसे खूबसूरत उपहार है... बहुत सुन्दर गीतों के माध्यम से सुन्दर सन्देश...लोहिड़ी व मकर संक्रांति पर्व की ढेरों शुभकामनाएँ
KHUBSOORAT GEETON KI LADI....BAHUT ACHHA LAGA...DHANYABAD...TO OUR BELOVED GROUP...
बहुत सुन्दर गीतों के माध्यम से सुन्दर सन्देश,,,
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